आयुर्वेद में ऋतुचर्या क्या है? उनके दोष और जीवनशैली

आयुर्वेद के अनुसार, प्रकृति में मौसम के आधार पर व्यक्ति की दिनचर्या भी परिवर्तन होनी चाहिए जिससे त्रिदोष संतुलित रहे और स्वस्थ जीवन का निर्वाह कर सके। ऋतुचर्या का प्रत्येक ऋतुओ में अलग-अलग प्रभाव पड़ता है जिसके बारे में आगे जान सकते है –
ऋतु दोष क्या है?
आयुर्वेदिक ग्रंथो में कहा गया है कि जब छह ऋतुओ के प्रभाव से कफ, पित्त और वात असंतुलित हो जाते है तो इसे ऋतु दोष कहते है।
आयुर्वेद पाठ के अनुसार ऋतुएं और उनकी दिनचर्या कौन सी है ?
1. हेमंत ऋतु या शीत ऋतु – नवंबर से जनवरी
- शीट ऋतू में कफ और वात बैलेंस होते है लेकिन पाचन प्रबल हो जाता है।
- इस समय ऊष्ण तासीर वाले पौष्टिक आहार जैसे घी, तिल, दूध और सूखे मेवे का सेवन करें।
- नियमित व्यायाम और तेल मालिश करें।
2. शिशिर ऋतु (कड़ाके की ठण्ड) – जनवरी से मार्च
- इस महीने में वात दोष बढ़ने लगता है।
- इस दौरान उचित मात्रा में गरम मसाले और घी का उपयोग कर सकते है।
- शरीर को गर्म रखने वाले आहार ले और ठन्डे पानी का इस्तेमाल न करे।
3. वसंत ऋतु – मार्च से मई
- इस महीने कफ दोष सक्रिय रहता है।
- सुपाच्य और हल्का भोजन ले।
- त्रिफला, नीम और शहद का सेवन करें।
- प्राणायाम और योग को शामिल करें।
4. ग्रीष्म ऋतु– मई से जुलाई
- यह पित्त दोष बढ़ने वाला मौसम है।
- बेल का शरबत, तरबूज, खीरा नारियल पानी जैसे ठंडी तासीर वाले पदार्थ खाये।
- तैलीय और मसालेदार भोजन से बचें, वहीसूती और हल्के वस्त्र पहने।
5. वर्षा ऋतु – जुलाई से सितंबर
- इस ऋतू में वात दोष असंतुलित, अपच, और जुकाम होता है।
- तुलसी, लौंग, अदरक का सेवन करे, सुपाच्य और थोड़ा हल्का आहार ही खाये।
- संक्रमण से बचने के लिए गुनगुना पानी पिए और भीगे नहीं।
6. शरद ऋतु – सितंबर से नवंबर
- पतझड़ के म औसम में भी पित्त दोष बढ़ जाता है।
- हरी पत्तेदार सब्जिया और ताजे फल खाये।
- आदिक धूप में न जाये शरीर को शीतल रखने वाले उपाए करे।
ऋतुचर्या चार्ट – Ritucharya Chart
ऋतु | अवधि | दोष | आहार | दिनचर्या |
---|---|---|---|---|
हेमंत (शीत ऋतु) | नवंबर – जनवरी | कफ, वात संतुलित | घी, सूखे मेवे, तिल, दूध | तेल मालिश, व्यायाम |
शिशिर (कड़ाके की सर्दी) | जनवरी – मार्च | वात का बढ़ना | गरम आहार, अदरक, हल्दी और तैलिये | ऊनी कपड़े, गर्म पानी |
बसंत | मार्च – मई | कफ का बढ़ना | हल्का भोजन, त्रिफला, शहद, नीम | प्राणायाम, योग |
ग्रीष्म | मई – जुलाई | पित्त का बढ़ना | बेल का शरबत, नारियल पानी, खीरा, तरबूज | धूप से बचाव, सूती कपड़े |
वर्षा | जुलाई – सितंबर | वात असंतुलन | सुपाच्य, हल्का भोजन, अदरक, तुलसी | भीगने से बचाव, गुनगुना पानी |
शरद (पतझड़) | सितंबर – नवंबर | पित्त बढ़ना | हरी सब्जियां, ताजे फल | ठंडे पदार्थ, धूप से बचाव, |
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निष्कर्ष
इस लेख में आयुर्वेद में ऋतुचर्या के बारे सामान्य जानकारी दी गयी है कि यदि हम स्वयं को प्रकृति के अनुसार परिवर्तित कर जीवनयापन करते है तो सदा सेहतमंद रह सकते है। लेकिन कोई भी उपाए करने से पहले किसी अच्छे आयुर्वेदाचार्य से संपर्क करे।