आयुर्वेद में विरेचन क्या है, प्रकार, फायदे और नुकसान
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Toggleआयुर्वेद में विरेचन का अर्थ और परिभाषा
अर्थ:
विरेचन का अर्थ है शरीर के अंदर मौजूद विषाक्त पदार्थों और अशुद्धियों को आंत्र (intestines) के माध्यम से बाहर निकालना। जिससे मलत्याग सुलभ और नियंत्रित तरीके से हो।
परिभाषा:
विरेचन कर्म आयुर्वेदिक चिकित्सा में शोधन प्रक्रिया है, जिसमें विभिन्न औषधियों द्वारा पाचन तंत्र को शुद्ध किया जाता है, जिससे शरीर को डेटस और बैलेंस किया जा सके।
विरेचन कितने प्रकार के होते है
- स्निग्ध विरेचन: इसमें तेल और घी से तैयार कुछ औषधियों का उपयोग पाचन तंत्र को चिकना और शुद्ध करने के लिए जाता है।
- रूक्ष विरेचन: इसमें कफ और चिकनाई वाले शरीर के लिए बिना तेल और घी के औषधियों का प्रयोग होता है।
- मृदु विरेचन: वृद्धो और कमजोर व्यक्तियों के लिए हलके प्रभाव देने वाली औषधियों के उपयोग से विरेचन किया जाता है।
- तीव्र विरेचन: अधिक गहराई से शुद्धि के लिए शक्तिशाली और तेज औषधियों का इस्तेमाल किया जाता है।
विरेचन के फायदे-Benefits Of Virechana In Hindi
- पाचन शक्ति को मजबूत और बेहतर बनाना।
- पित्त दोष से सम्बंधित समस्याएं जैसे एसिडिटी, लिवर डिसऑर्डर और त्वचा रोग को ठीक करना।
- शरीर से बेकार पदार्थों को बाहर निकालना।
- वजन घटाने में प्रभावशाली।
- मानसिक शांति प्रदान करना।
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विरेचन कर्म कैसे किया जाता है?-virechan kaise karte hai
विरेचन करने के पहले तयारी –
रोगी को 3 से 7 दिन तक जड़ी-बूटी वाले तेल या घी से स्नेहन और भाप का स्नान (स्वेदन) दिया जाता है।
शरीर की गतिविधि कम रखी जाती है और दो दिनों के लिए आराम करने को कहा जाता है जिससे विषैले पदार्थ पाचन क्षेत्र में जमा हो सके।
विरेचन की मुख्य प्रक्रिया
विरेचन वाले दिन व्यक्ति को सुबह रेचक औषधि दिया जाता है जिसके 60 मिनट बाद उसे दस्त होने लगता है। इससे पेट पूरी तरह से साफ हो जाता है। इस दौरान उसे गुनगुना पानी भी दिया जा सकता है।
विरेचन के पश्चात
विरेचन कर्म के बाद रोगी को हल्के आहार देने विरेचन कर्म के बाद रोगी को हल्का आहार जैसे – मूंग खिचड़ी या दाल, सूप आदि और फिर धीरे-धीरे ठोस आहार देना शुरू हो जाता है। लेकिन तला-भुना और मसालेदार भारी आहार से बचें।
विरेचन के बाद क्या खाना चाहिए ?
विरेचन कर्म के बाद रोगी को किस प्रकार की डाइट लेनी चाहिए उसके लिए जाने
विरेचन कर्म का कौन ले सकता है ?
- जिनका पाचन धीमा है
- पित्त की समस्या वाले
- एसिडिटी और अपच वाले
- अधिक वजन से ग्रस्त लोग
- सदैव कब्ज से जूझने वाले
- पेट के अल्सर की बीमारी के लोग
- प्लीहा और लिवर के रोग से सम्बंधित
- उच्च कोलेस्ट्रॉल वाले
विरेचन के नुकसान और सावधानियां
- विरेचन केवल आयुर्वेदिक प्रशिक्षित चिकित्सक की देखरेख में करना चाहिए।
- अधिक मात्रा में या गलत तरीके से विरेचन करने से डिहाइड्रेशन, कमजोरी, और अन्य समस्याएं हो सकती हैं।
- बच्चों, कमजोर लोगों, और गर्भवती महिलाओं को विरेचन से बचना चाहिए।
FAQs – विरेचन से सम्बंधित प्रश्न
Q- विरेचन करने के लिए कितने दिन चाहिए?
A- विरेचन बीमारी की स्थिति पर निर्भर करती है आमतौर पर यह विधि करीब से 9 से 10 दिनों के लिए किया जाता है जिसमे तेल लगाना और भाप का स्नान शामिल है।
Q- कैसे पता चलेगा कि विरेचन सफल है या नहीं?
A- यदि विरेचन सफल रहता है, तो शरीर में हल्कापन हल्का महसूस होगा, त्वचा में चमक बढ़ेगी, मल त्याग बिना किसी दिक्कत के होगी, अपच और विषाक्तता के लक्षण में भी कमी होगी।
Q- क्या विरेचन घर पर किया जा सकता है?
A- हाँ, हल्के विरेचन को घर पर एरण्ड तेल या हरड़, त्रिफला, जैसी जड़ी-बूटियों से किया जा सकता है, लेकिन गहरा विरेचन किसी एक्सपर्ट आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में ही करना चाहिए।