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प्रारब्ध कितने प्रकार के होते हैं? इसे कैसे बदला जा सकता है

वैदिक शास्त्रों के अनुसार, पिछले जन्मो के कर्मो का प्रभाव हमारे वर्तमान जीवन पर पड़ता है जिसे प्रारब्ध कर्म(prarabdh karm) के रूप में जानते है। लेकिन कई बार लोग यह प्रश्न करते है क्या अपने कर्मो को बदला जा सकता है या प्रारब्ध से छुटकारा पा सकते है इसनका उतर आज इस लेख में जानने का प्रयास कर सकते है।  

चित्र में प्रारब्ध को दर्शाती दो महिलाये
प्रारब्ध

प्रारब्ध कर्म क्या होता है?

प्रारब्ध शब्द का संस्कृत में अर्थ होता है – “जो प्रारंभ हो चुका हो ” यानि पिछले जन्मो में किये गए अच्छे या बुरे कार्यो का परिणाम मिलना प्रारंभ हो गया हो और इसे भोगना ही है। वही प्रारब्ध से हमें जीवन का गहन ज्ञान भी प्राप्त होता है।

प्रारब्ध को ही हम भाग्य कहते है।  व्यक्ति जो भी कार्य करता है वह संचित होता रहता है और उन्ही में से जिनका फल इस जन्म में मिलने वाला होता है तब वह प्रारब्ध बनकर सामने आता है। कुछ कर्म तो ऐसे होते है जिनका फल तुरंत मिल जाता है जैसे पानी पीना कर्म है और प्यास बुझ जाना फल लेकिन यह प्रारब्ध नहीं है। लेकिन प्रश्न ये की क्या प्रारब्ध से मुक्ति संभव है ?

भगवद गीता के अध्याय 3, श्लोक 9  में कहा गया है:
“यज्ञार्थात् कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः”

अर्थ – “बिना स्वार्थ के किया गया कार्य कर्म बंधन से मुक्त होता है।” 

कर्म तीन प्रकार के होते हैं:

  1. संचित कर्म – वे कर्म जो कई जन्मो से संचित (इकट्ठे) होते आ रहे है और संयोग बनने पर भविष्य में इनका फल मिलता है।
  2. प्रारब्ध कर्म – वे कर्म जिनका संयोग बन चुका है और उसे इस जन्म में भुगतना ही है। फल
  3. क्रियमाण कर्म – वे कर्म होते है जो अभी इस जन्म में कर रहे है जिसका फल भविष्य में मिलता है।

प्रारब्ध कितने प्रकार के होते हैं?

प्रारब्ध कर्म मुख्यतः तीन प्रकार के होते है –

1. इच्छित प्रारब्ध या सुखद प्रारब्ध

  • ये हमारे द्वारा अच्छे कार्यो का फल होते है जो सुख और प्रसन्नता देते है।  इस्नमेँ सफलता, अच्छा परिवार, सुखी दाम्पत्य, सुविधाएं, धन आदि प्राप्त होता है।

2. अनिच्छित प्रारब्ध – दुखद प्रारब्ध

  • ये बुरे कर्मो का फल होता इनसे असफलता, पीड़ा, मानसिक या शारीरिक कष्ट, बीमारी, धन हानि आदि भोगना पड़ता है।

3. मिश्रित प्रारब्ध या सुख-दुःख प्रारब्ध

  • इसमें अच्छे और बुरे दोनों कर्मो का फल मिलता है जिसमे व्यक्ति दोनों का ही अनुभव करता है।

प्रारब्ध कर्म से छुटकारा कैसे मिलता है?

प्रारब्ध कर्मो के फल से मुक्ति नहीं पायी जा सकती है लेकिन इसके परिणामों को हल्का किया जा सकता है पर यह थोड़ा कठिन है।  नियमित रूप से यहाँ बताये गए उपायों से प्रारब्ध का प्रभाव कम किया जा सकता है।

1. नाम जप और ईश्वर भक्ति 

  • अपने इष्ट का प्रतिदिन नाम जप करने से व्यक्ति में सहनशीलता आने लगती है जिससे उनमे बुरे कर्मो के प्रारब्ध सहने की छमता विकसित हो जाती है। इससे तलवार की जगह केवल सुई जितना दर्द महसूस होता है अर्थात कोई भी दुःख छोटा प्रतीत होता है।  ईश्वर का नाम जप करने से वर्तमान में भी बुरे कार्य करना छोड़ देता है और नाम में दया भावना पनपने लगती है।
  • आप विष्णु सहस्रनाम, हनुमान चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र, आदि का भी जाप कर सकते है।

2. मेडिटेशन और माइंडफुल्नेस 

  • ध्यान आपकी आत्मा का भोजन है जबतक उसे यह नहीं प्रदान होगा वह मन अशांत रहेगा। वही माइंडफुलनेस की प्रतिके आप वर्तमान में रहते है और भविष्य की चिंताओं से मुक्त रहते है।  ध्यान करने का प्रयास करे भले ही कुछ देर या फिर कोई भी ऐसा कार्य करे जिससे आप प्रेजेंट में रहे। इससे प्रारब्ध के अधिक नेगेटिव प्रभाव से बच सकेंगे क्योंकि चिंता करने से प्रारब्ध को बल मिलता है।
  •  आप प्राणायाम(डीप ब्रीथिंग) करे यह आत्मा की शक्ति बढ़ाता है।

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3. सत्संग और गुरु का सानिध्य 

  • एक अच्छा गुरु प्राप्त होना किसी हीरे को पाने से कम नहीं वही अच्छे संतों की संगति (सत्संग) से हमें जीवन की सही दिशा मिलती है, जिससे आप प्रारब्ध को पॉजिटिव के रूप में देखने लगते है।
  • अच्छे विचार और ज्ञान से बुरे प्रारब्ध का असर कम हो सकता है।

4. सेवा और पुण्य कर्म 

  • किसी भी कार्य को यदि सेवा भाव किया जाये चाहे वह छोटा या बड़ा वह हमारे प्रारब्ध का प्रभाव कम करता है। किसी को सोच समझकर अपने वाणी या विचारो से उसकी समस्या का हल करना भी पुण्य कर्म है

5. धैर्य और स्वीकृति 

  • यदि आप चाहते है कि प्रारब्ध का बुरा फल बहुत कम हो जाये तो सबसे पहले इसे स्वीकार करे जब तक हम इसे स्वीकारते नहीं है यह हमें परेशान करता है। जब इसे सपनकार स्वयं को ईश्वर को सरेनद्र करते है तो आप चिंताओं से मुक्त हो जाते है।
  • वही धैर्य से सबको बहुत डर लगता है लेकिन किसी भी बाधा को पार करने का महत्वपूर्ण स्थिति है।  जिसे पेशेशंस रखना आता है वह बिना किसी अधिक संकट में फसे मुसीबत पार कर लेता है। क्योंकि प्रारब्ध आपको कोई ज्ञान देने ही आया है जिससे वह गलती दोबारा न हो।

क्या प्रारब्ध बदला जा सकता है?

पूर्णतः नहीं, केवल इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है उसके लिए आध्यात्मिक रूप से स्वयं को बल देना होगा जिससे इसका असर बहुत कम हो और आपको बहुत थोड़ा ही दुःख मिले। कुछ बाते जो जननी चाहिए।

यदि आपका कोई प्रारब्ध बहुत मजबूत है तो उसे भोगना ही है चाहे वह अच्छा हो या बुरा, इसे टालना थोड़ा मुश्किल हो सकता है।  इस तरह के एक या दो ही प्रारब्ध हो सकते है।

आध्यात्मिक गतिविधियों से कुछ प्रारब्धो के प्रभाव इतने शून्य प्रतीत हो जाते है की वे घटित तो होते है लेकिन आपको पता नहीं चलता है।

आध्यात्मिकता में इतनी प्रबल शक्ति होती है कि बुरे से बुरे भी प्रारब्ध छोटा प्रतीक होता है लेकिन इसके लिए अपने अहंकार कोत्यागना होगा, सत्कर्म करने होंगे और सेवाभाव रखना होगा।

निष्कर्ष

इस आर्टिकल में प्रारब्ध कैसे बदले के बारे में एक सामन्य जानकरी प्रदान की गयी है। प्रारब्ध कर्म वर्तमान जीवन का एक अहम हिस्सा होता है जो हमारे जीवन को प्रभावित करता है।  इसके सम्बन्ध में आध्यात्मिक विशेषज्ञ से अवश्य सलाह ले।

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